We talk of tradition with reverence: it’s age conveys status and permanence. Hallowed and respected, mythic and old. To talk of change is heresy: change is modern, change is clean, change is unfettered by the shackles of history. Tradition is wood panelled, soot stained and aged for eighteen years with a peaty taste. Change is oily and metallic, plastic and glass.
महादेव जी की ठण्डाई (mahaadev jee kee thandaee)
आज से लगभग 15 साल पहले तक गांव में प्रथा थी कि किसी भी घर में लड़की की शादी हो आने वाले बारातीयों को सर्वप्रथम गांव के मघ्य में शिव मंदिर के पूर्व में जाजम बिछा कर बिठाया जाता था। एवं आने वाले सभी बारातियों को मोगरे के फूलों से बनी मालाएं पहनाई जाकर स्वागत किया जाता था। सभी को आराम से जाजम पर बिठाया जाकर मंदिर में बनाई गई विशेष शर्बत (ठण्डाई)गिलासों में डालकर एक-एक बराती को दी जाती थी।खास शरबत कि मिठास एवं खूशबु आज भी याद है। चुंिक उस समय हम बच्चे थें तो हमें आस पास बडे रूकने ही नही देते थे। ठण्डाई के बाद नाश्ता कराया जाता था। दुल्हा तोरण मारने जब दुल्हन के घर जाता था तब जाकर बराती बरात वाले के घर पहुचते थे। दुसरे दिन इसी स्थान पर जाजम पर बारात की विदाई की जाती थी। आज के समय बरात सीधे ही लड़की वाले के घर पहुचती है एवं नाश्ता एवं खाना खा कर विदा हो जाती है।
जन्तर बांधना
वर्षों पूर्व गांव में परम्परा थी कि गांव के मध्य में रिति-रिवाज एवं मंतरो से उपचारित एक ढाब (एक प्रकार की घास) का बना रस्सा बांधा जाता था। जिसे जन्तर कहते थे। जन्तर हर वर्ष बदला जाता था एवं टुटने पर अप-सुगन माना जाता था। उक्त कार्य हेतू समस्त ग्रामीण इकट्टा होते एवं अपने-अपने हिस्से का कार्य करते थे। इस अवसर पर गांव के भगत लोग देवगान के साथ माता माई के चबूतरे पर भेरू बुलाते थे। माता के आगे संगीत भजन के साथ गांव में स्थित सभी देवी-देवताओं के भोग लगाया जाता था।(गांव में लगभग 50 पूज्य स्थल है।) भोग बाटी-बाकला एवं पतासा का लगाया जाता था। भोग के लिए दो-दो के जोडे में लोग पूजन हेतू भेजे जाते थे। भोग के साथ में दो-दो लकड़ी के घोटे सिन्दुर में लेप किये हुऐ दिये जाते थे जो सबंधित देवी-देवता के चढावे के रूप में चढाये जाते थे।